*227 हरि के भजन कर ले रे।। 88
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हरि के भजन कर ले रे, दरसेगा नूर। दरसेगा नूर दीवाने कोई, मिलेगा जरूर।।
करो गुरु से अरज जब पाओगे मर्ज,
जिंदगानी बीती जाए फिर, चैतने की बारि कब जी।
गुरु के शब्द से हो जा, खल का कपूर।।
छोड़ो मत साधु संग, बार-बार लागे रंग।
भवसागर से हो निर्दंग, कालू से जीतो जंग जी।
मन का गुमान तजदे, काया का गुरुर।।
ध्यान पर कमान करो खींचना है सुन्न ताहीं।
सुरता निर्ता बुद्धि तीनों रोग रखो एक ताही।
सूली पर चढ़ गया हो जा चकना चूर।।
अलख संग कर ले खोजा, लाख पावे रोक रोजा।
मावस पूनम पड़वा दोजा, प्रीतम के संग कर ले मौजा जी,
कहे कबीर मोती बरसे अबीर, हंसा चुगेंगे जरूर।।
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