*174. तुम तो फसी काल के जाल।। 69

तू तो फसी काल के जाल रही तने कुछ भी खबर नहीं।।

कर्म फूट गया तेरा निर्भागी, शहर छोड़ जंगल में भागी।
काम क्रोध कुत्तों की थ्यागी, वे खींच ले तेरी खाल।।

कॉल कर्म की चरखी घुमाई लख चौरासी तूं भरमाई।
आदि घर की खोज ली राही, उलझी जन्म मरण के जाल।।

खोज करी ना अपने घट की गोल भरम की सिर पर मटकी।
तेरी आंखों के बंद रही पट्टी, इस विधि रही बेहाल।।

जप तप संयम में क्यों जूझे, पित्र देव भेव क्यों पूजे।
सत्संग कर तूने आप्पा सूझे, गुरु ढूंढन का कर ख्याल।।

जो तूं संत शरण में आ गए इस जाल से तूं बच जावे।
सुमिरन नाम अमर पद पावे बिना नाम कंगाल।।

गुरु ताराचंद का यही संदेशा चित्र दे कुंवर सुनो उपदेसा।
सुमिरन भजन करो हमेशा राधास्वामी कर दे निहाल।।

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