*251. हरि तेरो अजब निरालो काम।। 97
हरि तेरो अजब निरालो काम।।
सुख में सुमिरन कोई ना करता दुख में रटे तमाम।।
माया की धन बांध पोटली करता गर्व गुमान।
अंत समय में काम ना आवे नहीं समझे अज्ञान।।
मालिक मेरा सब कुछ तेरा क्यों भूला इंसान।
तेरा तुझसे पाकर के नर बन बैठा भगवान।।
नर तन चोला पाकर भोला रटा नहीं भगवान।
क्या करता क्या कर दे मालिक तू ना समझे अज्ञान।।
एक दिन माटी में मिल जावे हार्ड मांस और शाम।
झूठी काया झूठी माया सांचों है तेरो नाम।।
तू ही वाहे गुरु तू ही अल्लाह तू ही शिव और राम।
कह कबीर बुला ले मैं तेरे चरणों में लूं विश्राम।।
Comments
Post a Comment