*274. तेरा दाव लगा है खूब।। 112
तेरा दाव लगा है खूब सुमिरन करले रे भाई।
हरि की भक्ति साध की संगत नर देही पाई।
इब भजन का दांव बना है तज दे मान बड़ाई।
मेर तेर और कुटुंब ईर्ष्या, यह दुश्मन घर माही।
इनसे तो गुरु बचावे जो कोई देत दुहाई।।
गुरु का शब्द जितने मन में सब दुविधा मिट जाई
बिना सतगुरु रास्ता नहीं पावे न्यू ए धक्के खाई।।
भ्रम जाल में भूल रहा है धर्मगुरु की राही।
एक दिन तुमको चलना होगा यम पकड़ेंगे बांही।।
गीता दास अधीन तुम्हारे चरण कमल चित् लाइ।
घीसाराम साहेब तेरे ऊपर जिसने यो फंद छुड़ाई।।
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