*204. मेरे मन बस गयो रे सुंदर सजन सांवरो।। 80
मेरे मन बस गयो रे सुंदर सजन सांवरो।।
तन में मन में और नयन में रोम रोम में छायो।
जो काहू को डंसे भुजंगम ऐसा अमल चढ़ायो।।
सकूची लाज नहीं खुलती शंका सर्वस आप लुटायो।
जब से सुनी प्रेम की बतियां, दूजो नजर नहीं आयो।।
जित देखूं तित साहब दरसे, और नजर नहीं आयो।
इन नैनों में रमा रमैया जग को जगह नहीं पायो।।
अचरज कैसी बात सखी री अब मोहे कौन बतावे।
बिरहा समंद का मिला समंद में अब कुछ कहा ना जावे।।
जल में गई नून की मूरत सर्वस हो गया पानी।
यो हर की छवि हेर हेर कर हेरन हरण हिरानी।।
गूंगे ने एक सपना देखा किस विध बोले वाणी।
सैन करें और मगन जीव में जिन जाने तिन जानी।।
जिन देखें महबूब गुमानी वह भी भय गुमानी।
मैं जाती थी लाहे कारण उल्टी आप बिकानी।।
को समझे यह सुख की बतियां समझो से नहीं छानी।
नित्यानंद अब का से कहिए पीव की अकथ कहानी।।
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