*191. लागी थारे पाया राम।। 76

लागी थारे पाया राम, लीजो म्हारी बंदगी।।

चारो दिशा चेत के चितियां चिंता हरण मुरारी। 
हमको ठोर कहुं ना पाई ताकि शरण तुम्हारी।।

भव मारो भव तार गुसाईं या हम कुत्ते दरबारी।
अब कहां जाएं खाए प्रसादी पाया टूक हजारी।।

सुख सागर में किया बसेरा फिर क्यों दुख सतावे।
परमानंद तेज घन स्वामी करो कृपा जो भावे।।

जिनकी बांह गहो हित करके उनको कौन डिगावे।
शरण आए और जाए निराशा तेरा वृद्धि लजावे।।

हमको एक आधार तुम्हारा और आधार ना कोई।
जो जग ऊपर धरू धारणा चलता दिखे सोई।।

खिले फूल सोई कुमलावे, फेर रहे ना खुशबोई।
अब तो लगन लगी साहब से जो कुछ हो सो होई।।

पर्दा खोल बोल टुक हंसके हे महबूब गुमानी।
घट पट खोल मिलो तुम जिनसे अमर हुए वह प्राणी।।

नित्यानंद को दर्शन दीजो हे दिल मे हरम दिल जानी।
तन मन धन सब करो वरना मैं दीदार दीवानी।।

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