*281. सत्संग गंगा की धार में।। 117
सत्संग गंगा की धार में कोई नहावेगा न्हावनिया।।
गंगमें नहागै वाल्मीकि जी, जिसने ऋषियों की ली सीख जी।
थोड़ा कुटुंब परिवार मोह ममता के ढावनिया।।
गंग में नहा गए हरिश्चंद्र दानी खांसी में बिक गए तीनों प्राणी।
जिने अपना धर्म नहीं हारा वे अमरलोक जावनिया।।
गंगा में नहागे मोरध्वज राजा, शेर हिट दिया पुत्र का खाजा।
लड़के से खींच दिया आरा, हरि आप बने अजमावनिया।
गंगा में न्हागे सदानाथ जी, जिसके घर नहीं जात पात जी।
कबीर घर रचा भंडारा, भीलनी के बेर खावनिया।।
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