*235. भजन कर राम दुहाई रे।। 91

भजन कर राम दुहाई रे।।

जन्म अमोलक तुझे दिया नर देही पाई रे।
देहि को देवा लोचही, सुर नर मुनि राई रे।।

सनकादिक नारद रेट सब वेदा गायी रे।
भक्ति करें भव जल तरे सतगुरु शरणाई रे।।

मृगा कठिन कठोर है, काढ़े काई रे।
कस्तूरी है नाभि मे, ये बाहर भरमाई रे।।

राजा डूबे मान में पंडित चतुराई रे।
ज्ञान गली में बंक है, तने धुर मिलाई रे।।

उस साहिब को याद कर जिसने सब सोंध बनाई रे।
देखत ही हो जाएगा पर्वत से राई रे।।

कंचन काया नाश हो तन ठोक जलाई रे।
 मूरख बंदे बावले क्या मुक्ति कराई रे।।

अजामिल घणी कातर गए और सदन कसाई रे।
नीच तरे तो से कहूं, नर मूड अन्यायि रे।।

शब्द हमारा सच है और ऊंट की बाई रे।
धुएं के सा धोल है तीनो लोक चलाइ रे।।

कलमिस कोष्मल सभी कटे हो तन कंचन काई रे।
गरीबदास निज नाम की नित प्रुभी नहाई रे।

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