*207 कैसे हो हरि मेला।। 81
कैसे हो हरि मेला रे तूने अमृत में रस घोला रे।।
यह मन बड़ा दीवाना रे काम क्रोध लपटाना रे।।
माया का रस पिया रे कोढी को कंचन दिया रे।
जन्म अमोलक गंवाया रे, तूने अमृत तज विश खाया रे।
जनम जनम का सौदा अरे कामनी कनक का पूता रे।।
विषयों से नहीं भाजे रे काल शीश पर गाजे रे।
दुनिया में सोहरत पसारे रे, तने पटक पटक के मारे रे।।
है ऐसा जीव अभागी रे हरी छोड़ जगत लो लागी रे।
कोई नहीं है तेरा रे दिन दस लिया बसेरा रे।।
जो तू मोह भुलाना रे फिर पीछे दूर पयाना रे।
जब पूछे वह चलावा रे तब करें बहुत पछतावा रे।।
मैं कहा संदेश विचारी रे हर हीरा हाट तुम्हारी रे।
स्वामी गुमानी गावे रे, सो नित्यानंद वर पावे रे
Comments
Post a Comment