*217. हर भज हर भज हीरा परख ले।। 84
हर भज हर भज हीरा परख ले समझ पकड़ नर मजबूती।
अष्ट कमल में खेलो भाई अबधू, और वार्ता सब झूठी।।
पांच चोरटे इस काया में इनकी पकड़ो सिर चोटी।
पांचो मार पच्चीसों वश कर, जब जानू तेरी रजपूती।।
अमरलोक से सतगुरु आए वहां से लाए निज बूटी।।
त्रिवेणी के रंग महल में संतों ने मौज बड़ी लूटी।।
रुनझुन रुनझुन बाजे बाजे झिलमिल झिलमिल हो ज्योति।
ओंकार के निराकार में, हंसा चुगते निज मोती।।
दया धर्म की ढाल बनाले शेल बनाले धीरज की।
काम क्रोध को मार भगा दे, जब जानू तेरी रजपूती।।
पक्के धड़े का तोल बना ले कम मत राखी एक रत्ती।
शरण मछंदर जती गोरख बोले अलख लखें तो खरा जत्ती।।
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