*177 सखी री मैं कर सतगुरु का भेष।। 70
सखी री मैं कर सतगुरु का भेष शरण सतगुरु की जाऊंगी।।
हार सिंगार तार के तने में, भस्म रमाऊंगी।
तुलसी माला पहन गले में अलख जगाऊंगी
काशी मथुरा हरिद्वार ना तीरथ जाऊंगी।
जाए हिमालय करूं तपस्या ना तन को सुखाऊंगी।।
ऋषि मुनियों के जाऊं आश्रम खोज लगाऊंगी।
बाहर भीतर सब जग ढूंढू, ना अटका खाऊंगी।।
निशदिन गुरु का ध्यान लगाकर दर्शन पाऊंगी।
ब्रह्मानंद पिया घर जा के मंगल गाऊंगी।।
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