*173 मैं तो ढूंढत डोलू हे।। 68
मैं तो ढूंढत डोलू हे सतगुरु प्यारे की नगरिया।।
जंगल बस्ती शहर में ढूंढी बड़ी बड़ी विपदा मैंने झेली।
पाई नहीं मैंने प्यारे की नगरिया।। पांचों ने पांच पच्चीस ने ऐसी वहकाई देकर झकोले इत उत्त बुलाई।
मैं खाली रह गई हे पड़ के भूल भुलैया।।
जप तप तीरथ कुछ नहीं पाया भेख एक ने झूठा ठेका ठाया।
कैसे दिल को रोकुं हे, नहीं आवे सबरिया।।
वेद कितने मैं पढ़ा कुराना पाया नहीं कोई चिन्ह ठिकाना।
चारों दिशाओं दौड़ाई हे मैं अपनी नजरिया।।
चलतीचलती दिनोद में आई सतगुरुताराचंद की हुई शरणाई।
उनसे कंवर ने पाई हे निज घर की खबरिया।।
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