*185. मन का मरन लगा परिवार।। 73

मनका मरन लगा परिवार, जब मेहर हुई गुरुओं की।।
आशा तृष्णा मरी है मेरी, ईर्ष्या जलकर हो गई ढेरी।
                                 फिर मरा अहंकार।।
पांचो नारी मरी है प्यारी, पच्चीसों को हो गई भारी।
                                तीनों हुई मरने को तैयार।।
धरम प्यारा लिया कटारा, मन का कुनबा मर गया सारा।
                                जब हुआ ज्ञान प्रचार।।
सतगुरु गस्सी ज्ञान की खाई, खूब तरह से करी सफाई।
                                फिर हो गई अमन बहार।।
सतगुरु घीसा प्रेम प्रीत से, अब हो गई धर्म की जीत से।
                              मन की हो गई हार।।
यह अवगत कि तुम्हें सुनाई हो गई सतगुरु जी की चाही।
                                मन मरा झक मार।।


Comments

Popular posts from this blog

*165. तेरा कुंज गली में भगवान।। 65

*432 हे री ठगनी कैसा खेल रचाया।।185।।

*106. गुरु बिन कौन सहाई नरक में गुरु बिन कौन सहाई 35