*364 हम से कौन बड़ा परिवारी।। 154

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हम से कौन बड़ा परिवारी।।

सत्य से पिता धर्म से भ्राता, लज्जा सी महतारी।
शील बहन संतोष पुत्र है, क्षमा हमारी नारी।।

आशा साली तृष्णा सासु, लोभ मोह ससुराली।
अहंकार से ससुर हमारे, वह सब के अधिकारी।।

दिल दीवान सूरत है राजा, मंत्री बुद्धि हमारी।
 काम क्रोध दो चोर बसत हैं,उनको डर मोहे भारी।।

ज्ञानी गुरु विवेकी चेला, सदा रहे ब्रह्मचारी।
पांच तत्व की बनी नगरिया, दास कबीर विचारी।।

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