*377 यह सौदा सत भाय करो प्रभात रे।। 158
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यह सौदा सत्यभाय करो प्रभात रे।तन मन रतन अमोल, बटाऊ जात रे।।
बिछड़ जाएंगे मीत, मता सुन लीजिए।
फिर ना मेला होए कहो क्या कीजिए।।
शील संतोष विवेक दया के धाम हैं।
ज्ञान रतन गुलजार संघाति राम है।।
धर्म ध्वजा फरकत फरहरे लोक रे।
ता मत अजपा नाम सुसोदा रोक रे।।
चले बनजवा ऊंट हूट गढ़ छोड़ रे।
हर हारे कहता दास गरीब लोग जम दांड रे।।
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