*372 गठरी-३ कित।। 157
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गठरी गठरी गठरी कित भुला रे मुसाफिर गठरी।।
इस गठरी में माल भतेरा।
दाख छुहारे गिरी मिश्री।।
इस गठरी ने डाकू लूटै,
जादू चले न कोय जकड़ी।।
भक्ति करे तो ऐसी करना,
ज्यूँ चढ़े बांस पे नटनी।।
कह कबीर सुनो भई साधो,
सत्त की है ये पटड़ी।।
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