*169. जगा ले सजनी बन्ना सोवे हैं अटारी।। 67
जगाने सजनी बन्ना सोवै हैं अटारी।।
उस बनने के रूप रेखा ना, अक्षर तक का लिखा लेख ना।
अमर पुरुष जो द रेट भेेख ना शोभा वाकी अगम अपारी।।
उस बनने के चरणों की दासी काटेंगे जन्म घर की फांसी।
आत्म रूप अचल अविनाशी वा की सूरत पर बलिहारी।।
जरा जरे मरे ना मारा टारा टरे ना बिडरे विडारा।
तीन लोग उने खोजत हारा कहते हम दे दे किलकारी।।
कह कबीर इस बंदे को मोहल्ले सुन शेखर में जाकर टोह ले।
अपना आप जगत से खो लें सुरत दृष्टि कर मुर्त निहारी।।
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