*357. सौदा करै सो जाणै।। 152

                                
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सौदा करै सो जाणै रे, काया गढ़ खुला है बाजार।।
   इस काया में हाट लाग रही, बैठे साहूकार।
   व्यापारी ने पूरा तोलै, डांडी मारैं सरे बाजार।।
इस काया में लाल बिकें, कोय परखे परखनहार।
गुरूमुख जोहरी परख पिछाने, के नुगरा ने सार।।
   इस काया में पातर नाचै, हंस करें व्यवहार।
   अर्द उर्द की पायल बाजै, सुरतां सुन्न में करै सिंगार।।
इस काया में चोर फिरें, तनै लूटें सरे बाजार। 
गुरुमुख हो सो बचै काल तैं, नुगरा भव की धार।।
   इस काया में धनी विराजे, तिनके ओट पहाड़।
   कह कबीर सुनो भई साधो, गुरु बिन घोर अंधियार।।


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