*278 वह सुमिरन एक न्यारा।।113।।
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वो सुमरिन एक न्यारा रे साधु भाई।जिस सुमिरन से पाप कटत हैं होवे भाव जल पारा।।
माला ना फिरे जिभ्या नहीं हिले, आप ही होत उचारा।
सभी के घट रचना लागी, क्यों नहीं समझे गवारा।।
पाखंड तार टूटे नहीं कब हूं, सोहन शब्द उचारा।
ज्ञान आंख मेरी सतगुरु खोली, जाने जानन हारा।।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण चारों दिशा पच हारा।
कहे कबीर सुनो भाई साधो ऐसा शब्द टकसारा।।
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