*389 टांडा तो तेरा लद जाएगा।।163 ।।
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टांडा तो तेरा लद जाएगा बंजारी,
उठ विरिहन सुरत सम्भाल।।
टांडा तेरा लद चला हे, तूँ विरिहन रही सोय।
आंखखुली जबरही एकली, नैन गंवाए रो रोये।।
धमनी धर्मन तैं बंद हुई रे, जल बुझ भये अंगार।
आहरण का सांसा मिटा रे, लद गए मीत कुम्हार।।
चन्दन की चौकी बिछी रे, बीच मे जड़ दिये लाल।
हीरां की घुंडी घली ते, पच-२ मरो हे सुनार।।
लाखों शीश तूँ दे चुकी हे, यमराजा की भेंट।
एक शीश तनै ना दिया हे, सद्गुरु जी के हेत।।
कह कबीर सुनो जी केशवा, थारी गत अगम अपार।
सन्तों ने ला दो नाम धनी के, लोभ मरो संसार।।
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