*374 मत बांधो गठरिया अपयश की।। 157
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मत बांधो गठरिया अपयश की।। अपयश की रे बिना शक की।।
मात-पिता से मुख नहीं बोले, त्रिया से बात करे रस की।।
धन योवन का गर्व न कीजे तेरी उमरिया दिन दस की।।
धर्म छोड़ अधर्म को ध्यावे नैना डुबावे जन्म भर की।।
भाई बंधु और कुटुंब कबीला यह सब है रे मतलब की।
कह कबीर सुनो भाई साधो निकलेगा सांस रहे ना वश की।।
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