* 188. घुंघट के पट खोल री तने राम मिलेंगे।। 74
घुंघट के पट खोल रे तोहे राम मिलेंगे।।
सब घट रमता राम रमैया कठोर वचन मत बोल री।।
साहिब आवे तेरी धीर बंधावे देगा कुंडी खोल री।।
रंग महल में जोत जगत है आसन से मत डोल री।।
कह कबीर सुनो भाई साधो बाजे अनहद ढोल री।।
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