*233. तूं राम सुमर ले मंजिल दूर पड़ी।। 91

तुम राम सुमर ले मंजिल दूर पड़ी।।

सांस तेरा यह वृथा जावे मानुष जन्म फिर नहीं आवे।
आंख खोल जरा किधर लखावे सिर पर मौत खड़ी।।

भाई बंधु कुटुंब कबीला, यम ले जा जब हो जा ढीला।
नारी तो तेरी छैल छबीला, रोवेगी खड़ी खड़ी।।

इंद्रिय वेग बहु बलवानी वेद पढ़े पंडित मुनि ज्ञानी।
हार गए ब्रह्मचारी स्वामी, डूब गए पापी घड़ी घड़ी।।

चक्षु रूप अनोखा चाहवें नाक कहें हम इत्र लगावे।
कान कहे मैंने गंधर्व गावें, पांचों की बंधी लड़ी।।

रसना रस हत्या करवावे काम जो वेश्या संग लिपटावे।
हीरानंद कहे गुरु बचावे, भूलूं ना एक घड़ी।।

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