*166 सखी री पड़ी अंध के कूप।। 66
सखी री पड़ी अंध के कूप, सजन घर कैसे जावे री।।
कॉल ने रख रखा यह डेरा तेरे चौगिरदे करड़ा पहरा।
तूं कैसे निकल कर जावे री।।
माया नए नए खेल दिखावे बंदर की तरह नाच नचावे।
अंत में तुम खाली जावे री।।
जग चिड़िया रैन बसेरा है लगा आवागमन का फेरा है।
समझ तूने कुछ ना आवे रे।।
कुल कुटुंब में क्यों भरमाई यह तो है बादल की छाई।
पल में आते जावे री।।
गुरु खोज जो मुक्ति चाहवे, काम क्रोध को मार भगावे।
तूने शुद्ध निज घर की आवे री।।
सतगुरुताराचंद दे ज्ञान कटारापकड़ो शरण तो हो निस्तारा।।
जो तू राधास्वामी गावे री।।
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