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Showing posts from November, 2024

डगरिया भूल गई मैं किस विधि घर को जाऊं।।

विदेशी चलो अमरपुर देश।।

बरजे नहीं माने यह मन जालिम जोर रे।।

हंसा मन खेले जग जुआ।।

जग में सोई वैराग कहावे।।

रे सुख अब मोही विष भर लगा

बोलो साधु अमृतवाणी, बरसे कंबल भीगे पानी।।

तेरा जन एक आध है कोई।।

दृष्टि पड़े सो माया संतो।।

अब हम आनंद को घर पायो।।

अब हम आनंद का घर पायो। जब से दया भयी सतगुरु की अभय निशान बजायो।।

** भजन बिन तीनों पन बिगड़े।।

भजन बिन तीनों पन बिगड़े।। चेतो रे नर जीवन थोड़ा, काल करे झगड़े।। बालपना खेलन में खोयो, तरूणाई देहें। वृद्ध भयो जब काल ग्रासे, अंधा होय निबड़े।। मन भुजंग माया को मातो, बोलत है करड़े। जब ही हंसा करत पयाना, माटी होय पड़े।। मानुष देह धरे काहे को, पशु न भया कहू रे। कह कबीर सुनो भई साधो, संत ही ध्यान धरे।।

** मन तूं मान शब्द उपदेशा।।

मन तूं मान शब्द उपदेशा।। सार शब्द ओ गुरु मुख वाणी, ता को कहो संदेशा।। जाहि तत्व को मुनिवर खोजें, ब्रह्मादिक सो ज्ञानी। सोई तत्व गुरु चरणन लागे, भक्ति हेतु कर प्राणी।। कथ में दया दीनता आवे, हंसी मिथ्या ज्ञानी। आत्म चिन्ह परात्म जाने, रहे सदा अनुरागी।। शब्द प्रतीति शब्द कसौटी, निश दिन विरह वीरानी। जहां लो अर्थ तहां लो पूछे, जहां लागी तहां लागी।। कह कबीर ये तत्व जो बुझे माने सीख हमारी। काल विकाल वहां नहीं व्यापे, सदा करो रखवारी।।

** नाम में भेद है साधो भाई।।

नाम में भेद है साधो भाई। जो मैं जानूं सच्चा देवा, खट्टा मीठा खाई। मांग पानी अपने से पीवे, अब मोरे मन भाई।। ठुक ठुक के गढ़े ठठेरा, बार बार ताव भाई। वा मूर्त के रहो भरोसे, पिछला धर्म नसाई।। ना हम पूजी देवी देवता, ना हम फूल चढाई। ना हम मूर्त धरी सिंहासन, ना हम खंड बजाई।। कांसी में जो प्राण त्यागे, सो पत्थर भये भाई। कह कबीर सुनो भई साधो, भरमे जन फंकवाई 

** ऐसे हरि नहीं पाइए मन चंचल भाई।।

ऐसे हरि नहीं पाइए मन चंचल भाई।। सुग्गा पढ़ावत रैन दिवस, वो लेटत सारा। गुरु के शब्द चीन्हें नहीं, हरि के खाक बिलाई।। देखन का बक उजला, मन मैला भाई। आंख मीच मोहिनी भया, मनसा धर खाई।। मूड मुंडाए भेष धरे, नाचे और गावे। आप तो समझे नहीं, औरों को समझावे।। आश करे बैकुंठ की, करनी के काचे। कह कबीर तब हरि मिले, हृदय हो सांचे।।

** 144 तेरा जोगन आला भेष हे मीरा नाचे दिन रात।। 10मार्च।।

तेरा जोगन आला भेष हे मीरा नाचे दिन रात।। तन के ऊपर भस्म रमाई, श्याम के संग में प्रीत लगाई।                        तने कर दिया खड़ा क्लेश हे मीरा।। धरती पर तैं जान ने हो रही, पत्थर मे क्यों श्याम ने टोह रही।                       तेरे खुले पड़े रहे केश हे मीरा।। कद लग बैठी रहेगी कंवारी, राणा गैल कर जान की त्यारी।                     उड़े ब्रह्मा विष्णु महेश हे मीरा।। रोज रोज क्यों हमने बहकावे, तेरा श्याम ना कभी भी आवे।                     म्हारे दिल पे लागे ठेस हे मीरा।। गुरु मिला तने बड़ा छबीला, देखा कार्तिक जगा का झमेला।                   चली गुरु के देश हे मीरा।।

**828 आया था मुट्ठी भींच रे जागा हाथ पसार।। 25अप्रैल।।

आया था मुट्ठी भींच रे जागा हाथ पसारे।। पांच तत्व का पुतलाजी,                  जावेंगे पांचोंपाट रे सब न्यारे न्यारे।। मन कपटी की मत मानियो रे,                 इस की लंबी पाँख, कहीं भी उड़ जाए रे।। जीव अमानत राम की जी,                 सैं गिनती के सांस रे ना मिले उधारे।। इड़ा पिंगला सुषमणा नाड़ी जी।                  नो दरवाजे जाएंगे टूट रे, बड़े बूढ़े ने गाए।। धर्म चंद अभिमान न करना जी।                   एक कुल्हड़ी में घले हाड़ रे तेरे तन के सारे।।

** 900 ओ पापी मन कर ले भजन।। 15मई

ओ पापी मन कर ले भजन, बाद में तू पछताएगा।                          जब पिंजरे से पंछी निकल जाएगा।। क्यों करता तू मेरा मेरा, ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा। खाली हाथ आया तूं खाली हाथ जाएगा। जैसा किया कर्म तूं, वैसा ही फल पाएगा।। भाई बंधु कुटुंब कबीला यह तो जग का झूठा झूमेला। मरने के बाद तुझे आग़ में जलाएंगे। तेरह दिन तक मातम वो मनाएंगे।। भरी जवानी जी भर के सोया, आया बुढ़ापा फिर तूं रोया। प्रभु की नजर से तू बच के कहां जाएगा।  आएगा बुढ़ापा तो थर थर काँपेगा।।

*29 गुरु संग डोरी लागी रे।। 19मार्च ।।

गुरु संग डोरी लागी रे। गुरु संग प्रीत लागी रे।। काया नगर के बीच अमर ज्योति जागी रे।। नाभि शब्द पश्चिम घर गेरा, मार्ग सागी रे। बंक नाल के राह में मुरली गहरी बाजी रे।। इंगला पिंगला नार सुखमना, सीधी आगी रे। गगन मंडल के बीच अमी, की झाड़ियां लागी रे।। दसवें की मने जान पटी म्हारी सुरता लागी रे। सुन्न शिखर के बीच, सतगुरु मिल गए सागी रे।। सुन्न में पूगा सूरज उगा, भाग़ जागी रे। गरीब दास की संशय भ्रमणा, दूर भागी रे।।

*35 गुरु चरण कमल बलिहारी रे।। 20मार्च।।

गुरु चरण कमल बलिहारी रे, मेरे मन की दुविधा टारी रे।। भव सागर में नीर अपारा, डूब रहा नहीं मिले किनारा।                       पल में लिया उभारी रे।। काम क्रोध मद लोभ लुटेरे, जनम जनम के बैरी मेरे।                         सब को दीन्हा मारी रे।। द्वैत भाव सब दूर कराया,  पूर्ण ब्रह्म एक दर्शाया।                          घट घट जोत निहारी रे।। जोग जुगत गुरुदेव बताई, ब्रह्मानंद शांति मन आई।                           मानुष देह सुधारी रे।।

*180 सखी री मैं तो आई पिया के देश।। 15मार्च।।

सखी री मैं तो आई पिया के देश। दर्शन करके प्रसन्न हो गई नारायण प्रवेश।। टहल बजाऊं सेज सजाऊ धरू सरहाने वेश। बैठ प्रेम से पंखा झोलू सेवा करूं हमेश।। उठत बैठत सांझ सवेरा, वहां पे आवे आनंद घनेरा। मेरे पिया का ऐसा चेहरा, लगता है ज्यों दरवेश।। वहां पर अनहद बाजा बाजे बैठी सिहासन सतगुरु साजे। वहां पर झिलमिल चमके लागे चांद सूरज परवेश।। कहे मीरा पिया की लगन में, लहरें उठ खुशीसे मन मे। भैंस चराऊं पिया के संग में, कट जा कर्म क्लेश।।

*250 कैसे मिलूं पिया अपने को।। 24मार्च।।

कैसे मिलूं पिया अपने को।। पिया बिसर मेरी शुद्धबुद्ध बिसरी, व्यथाबढ़ी तन अपने को।। भवन न भावे विरह सतावे, क्या करिए जग सपने को।। दिखे देह नेह नहीं छूटे, ले रही माला जपने को।। वन वन ढूंढत फिरूँ दीवानी, ठोर न पाई छिपने को।। नित्यानंद महबूब गुमानी, को समझावे नपने को।।

*310 कर नैनों में दीदार महल में प्यारा है।। 7अप्रैल ।।

कर नैनो में दीदार, महल में प्यारा है।। उलट नागनी गगन संवारे, शट चक्र की शुद्ध विचारे। मेरुदंड के बीच में, ये पवन दोधारा है।। इंगला पिंगला हो कर भायली, सुषमना से ध्यान लगावे। त्रिवेणी के घाट में हो, चलो भव से पारा है।। गगन मंडल में अमि बरसे, शूरा होय सो भर भर पीवे। नुगरा नुगरा जावे प्यासा हो, जिनका घट अंधियारा है।। सोहम शब्द हृदय में धारी, कह कबीर सतगुरु लेवे तारी। खुला भर्म किवाड़ हमारा हो, अनहद की झंकारा है।।

*490 धोबिया मेरो मैल छुड़ा दे।। 9अप्रैल ।।

धोबिया मेरा मैल छुड़ा दे। जन्म जन्म की मैली चादर, उजली कर पहना दे।। ऐसा धोबी पाट लगा लो, धूल जाए मेरा ताना बाना। ध्यान कासाबुन प्रेम कापानी, अपने करुणाकर से लगाना।। ऐसी निर्मल करना इस को, जो इसे राम मिला दे।। सारे दाग मिटाना इस के, परत परत इस के सुलझाना। तार तार को शीतल करना, लौट के फिर पड़े न आना। धीरज की इसे धूप लगा कर, ज्यों की त्यों लौटा दे।।

*811 किसा सुंदर जगत रचाया।। 23अप्रैल।।

किसा सुंदर जगत रचाया,             इसा कारीगर कित पाया रे।। पानी पे या धरती टिका दी, किते भी बीम गिराया ना। बिन खंभों के आसमान, इसा अचरज किते भी पाया ना।            दिन में दीप जलाया, इसका सूरज नाम बताया रै।  रात में चंदा करे रोशनी, या जगमग करती तारॉ की। अटल स्थान गुरु को दिया, सप्त ऋषि अवतारॉ की।           ना समझ कोई भी पाया प्रभु की निराली माया रे।। भूमंडल पे सृष्टि रचाई, नर और नारी बना के रे। अपने अपने काम में लाए, चार वर्ण बना के रे।            यो मोह का फंदा लाया, ना इस तैं लिकडन पाया रे।। नदिया नाले पहाड़ बनाए, झील कहीं पे दलदल हो। सात समुन्द्र इतने गहरे, नदियां करती कलकल हो।           जंगलों का जाल बिछाया, पंछी को मिलती छाया रे।। कोय रो पाया कोय जो पाया, धरती पर तार दिए। जीवन मरण लगाया अब के, सदा कोय भी ना टिकन दिए।           यो मांगेराम ने गाया, वो समदर्शी कहलाया रे।।

*1002 तूं चेतन खुदा खुद आप हैं धरता है किसका ध्याना।। 18जून।।

तू चेतन खुदा खुद आप हैं धरता है किसका ध्याना।। तूं ही खंड और पिंड बखाना, बाहर भीतर क्यों भटकाना जी।            तूं करता किस का जाप है,                                     सब माया माहीं भुलाना।। तूं ही ईश्वर ब्रह्म कहाना,  तूं आत्म परमात्म माना जी। सरगुण निर्गुण तूं ठहराना, काहे बना गरगाप है तूं।                                  तज दे सर्व अग्याना।। तुझ से भिन्न कहो कहां ग्याना, जागृतज्ञान परख तूं ध्याना जी गाफिल दशा को दूर हटाना, दूजा ना कोई बाप है                                     निज संग माहीं समाना।। अमर अलौकिक रूप तुम्हारा, जन्म मरणमाया से न्यारा जी। सत्य सनातन संत पुकारा, गरीब बाबा के शाप है।                            तूं संग मैं ही परखाना।।

*1170 चरखे आली कर ले तयारी आ जागा लानिहार।। 25जून।।

चरखे आली कर ले तयारी आ जागा लानिहार।                    नाट तूं सकती ना।। जब तेरा चरखा नया-नया था प्रेम पिया से करा नहीं। मोह माया में फंसी रही फिर भी पेटा भरा नहीं।              इब काम ना आवे माया, ना तेरा परिवार। जब तेरा चरखा हुआ पुराना, और लालची होगी तूं। अहंकार की ओढ चादर, तान के न सोगी तूं।           पांच ढाल के बैरी सै तेरे, डोब गए मझधार।। इब चरखे के पुर्जे खिंडगे तेरी मर्ज़ी तें चाले ना। कब तक दीवा बलेगा इसमें, तेल भजन का घाले ना।          नहीं राम का नहीं काम का, तेरा चरखा हुआ बेकार।। ईब कमल सिंह इस चरखे की,राख बनेगी दो मुट्ठी। कितना काता कैसा काता, चले गवाही ना झूठी।          फोटो रह जा चरखे का बस, देखेगा संसार।।

* 1248 भेद बिना घर दूर रे बंदे।। 3जुलाई।।

भेदी हो कोई भेद बतावे, भेद बिना घर दूर रे।। उस घर की तो दूर मंजिल है, सब में एक नाम सजल है।  खोजले मन मे वही असल है, जहां बाजे अनहद तूर रे।। वेदों का कुछ और कथन है, संत जनों का अलग मथन है। सब भूले वह कौन रतन है, घट घट में भरपूर रे।। खिला अजब गुलजार देख ले, नाम अमर फल चाख देख ले। मत सोवे जाग देख ले, काल बलीरा घूर रे।। निराकार वह अजर अमर है, इस काया में खिला सज़र है। गुरु रविदास वो लखी नगर है, मिला नूर में नूर रे।।

*811 जगत को कठपुतली का खेल, खिलाया मायाधारी ने।।

जगत को कठपुतली का खेल।।                          खिलाया मायाधारी ने।। एक पर्दे में नाच नचावे, बिन पैसे के खेल दिखावे।                         करता कोन्या धक्का पेल।। रूप धार रंग मंच पर आते, अपना अपना रोल निभान।                         सबकी रखे से पकड़ नकेल।। किसे ने राजा किसे ने भिखारी, दस बेटे कोय बांझ है नारी।                         बना दी घरवासा या जेल।। किसी के धन के ढेर लगाए, कोय हांडे से कटोरा ठाए।                        कुछ भी जान देवे ना गैल।। जब यो खेल खत्म है करता, मांगेराम फिर पर्दा है गिरता।                          बड़ा को मायावती से मेल।।

*1248 ढूंढत फिरती बाहर बावली, पिया बसे तेरे घर में।।

ढूंढत फिरती बाहर बावली पिया बसे तेरे घर में।                         राम तेरे रमा हुआ जर जर में।। घृत दूध में तेल तिलों में, मीठा है शर्बत मे। ज्यों आभूषण में कनक बावली, सूत रमा वस्त्र में।। गंध पुष्प में माटी घट में, करड़ापन पत्थर में। जैसे बर्फ में पानी सजनी नारी और नर में।। देह देह से तजौ प्रीति, डाटो सूरत अधर में। चलो पिया के देश बावली, क्यों अटकी थी भर्म में।। काहे लिया दुहाग सुहागन, चूड़ा पहरो कर में। जो प्रीतम से मिलना चाहे, चढ़ जा सुन्न शिखर में।। तारानंद आहे बैठो रथ में, जा पहुंचे पल भर में। आत्मा नंद ले हाथ ठीकरा, राख रमा ली सर में।।

नई कबीर भजन सूची।।

         ऐसी भूल दुनिया के अंदर।।          और व्यापार तो बड़े हैं।।          क्या ग़र्ज पड़ी संसार में जब लिया फकीरी बाणा।।          क्या बैठा हंस उदास।।         क्या भूला दीवाने।।         क्यों भटके बाहर क्यों भटके।।        कठिन सांवरे की प्रीत।।        कोई आवे है कोई जावे है।।        तूं चेत प्यारे अपने आप को चेत।।        भरम जाल में जगत फंसा है।।         मन का धोखा भागा रे भाई।।          त्रिकुटी में झांक सुरता।।        हो तेरे कोना बस का रोग।।         हरि बिन कौन सहाई मन का।।         हरि बिना ना सरे री माई।। विनती।। 1 काहे की भेंट चढ़ाऊ गुरु थारे।।1।। 2 किस पर  मैं जां तुमने तो छोड़ दाता जी।।2।। 3 एक नाम लग जाऊं गुरुजी थारे।।3।। 4 सतगुरु अपने के सम्मुख रहना।।3।। 5 नमो नमो हमारे गुरुदेव को।।4।। 6 सारे तीरथ धाम आपके चरणों में।।5।। 7 गुरु मिल गए पुरमपुरा।।189।। 8 गुरुजी थारी महिमा न्यारी है।।6।। 9 म्हारे गुरु के चरण की धूल मस्तक लग रही।।7।। 10 गुरु के समान नहीं दाता रे जग में।।8।।  11 गुरु के समान नहीं दूसरा जहां में।।9।। 12 गुरु के समान दाता और ना जहां में।।10।। 13 गुरु के समान दाता क