* 1248 भेद बिना घर दूर रे बंदे।। 3जुलाई।।

भेदी हो कोई भेद बतावे, भेद बिना घर दूर रे।।

उस घर की तो दूर मंजिल है, सब में एक नाम सजल है। 
खोजले मन मे वही असल है, जहां बाजे अनहद तूर रे।।

वेदों का कुछ और कथन है, संत जनों का अलग मथन है।
सब भूले वह कौन रतन है, घट घट में भरपूर रे।।

खिला अजब गुलजार देख ले, नाम अमर फल चाख देख ले।
मत सोवे जाग देख ले, काल बलीरा घूर रे।।

निराकार वह अजर अमर है, इस काया में खिला सज़र है।
गुरु रविदास वो लखी नगर है, मिला नूर में नूर रे।।

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