*811 किसा सुंदर जगत रचाया।। 23अप्रैल।।

किसा सुंदर जगत रचाया,  
          इसा कारीगर कित पाया रे।।
पानी पे या धरती टिका दी, किते भी बीम गिराया ना।
बिन खंभों के आसमान, इसा अचरज किते भी पाया ना।
           दिन में दीप जलाया, इसका सूरज नाम बताया रै।
 रात में चंदा करे रोशनी, या जगमग करती तारॉ की।
अटल स्थान गुरु को दिया, सप्त ऋषि अवतारॉ की।
          ना समझ कोई भी पाया प्रभु की निराली माया रे।।
भूमंडल पे सृष्टि रचाई, नर और नारी बना के रे।
अपने अपने काम में लाए, चार वर्ण बना के रे।
           यो मोह का फंदा लाया, ना इस तैं लिकडन पाया रे।।
नदिया नाले पहाड़ बनाए, झील कहीं पे दलदल हो।
सात समुन्द्र इतने गहरे, नदियां करती कलकल हो।
          जंगलों का जाल बिछाया, पंछी को मिलती छाया रे।।
कोय रो पाया कोय जो पाया, धरती पर तार दिए।
जीवन मरण लगाया अब के, सदा कोय भी ना टिकन दिए।
          यो मांगेराम ने गाया, वो समदर्शी कहलाया रे।।

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