** ऐसे हरि नहीं पाइए मन चंचल भाई।।
ऐसे हरि नहीं पाइए मन चंचल भाई।।
सुग्गा पढ़ावत रैन दिवस, वो लेटत सारा।
गुरु के शब्द चीन्हें नहीं, हरि के खाक बिलाई।।
देखन का बक उजला, मन मैला भाई।
आंख मीच मोहिनी भया, मनसा धर खाई।।
मूड मुंडाए भेष धरे, नाचे और गावे।
आप तो समझे नहीं, औरों को समझावे।।
आश करे बैकुंठ की, करनी के काचे।
कह कबीर तब हरि मिले, हृदय हो सांचे।।
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