*1248 ढूंढत फिरती बाहर बावली, पिया बसे तेरे घर में।।
ढूंढत फिरती बाहर बावली पिया बसे तेरे घर में।
राम तेरे रमा हुआ जर जर में।।
घृत दूध में तेल तिलों में, मीठा है शर्बत मे।
ज्यों आभूषण में कनक बावली, सूत रमा वस्त्र में।।
गंध पुष्प में माटी घट में, करड़ापन पत्थर में।
जैसे बर्फ में पानी सजनी नारी और नर में।।
देह देह से तजौ प्रीति, डाटो सूरत अधर में।
चलो पिया के देश बावली, क्यों अटकी थी भर्म में।।
काहे लिया दुहाग सुहागन, चूड़ा पहरो कर में।
जो प्रीतम से मिलना चाहे, चढ़ जा सुन्न शिखर में।।
तारानंद आहे बैठो रथ में, जा पहुंचे पल भर में।
आत्मा नंद ले हाथ ठीकरा, राख रमा ली सर में।।
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