*1002 तूं चेतन खुदा खुद आप हैं धरता है किसका ध्याना।। 18जून।।
तू चेतन खुदा खुद आप हैं धरता है किसका ध्याना।।
तूं ही खंड और पिंड बखाना, बाहर भीतर क्यों भटकाना जी।
तूं करता किस का जाप है,
सब माया माहीं भुलाना।।
तूं ही ईश्वर ब्रह्म कहाना, तूं आत्म परमात्म माना जी।
सरगुण निर्गुण तूं ठहराना, काहे बना गरगाप है तूं।
तज दे सर्व अग्याना।।
तुझ से भिन्न कहो कहां ग्याना, जागृतज्ञान परख तूं ध्याना जी
गाफिल दशा को दूर हटाना, दूजा ना कोई बाप है
निज संग माहीं समाना।।
अमर अलौकिक रूप तुम्हारा, जन्म मरणमाया से न्यारा जी।
सत्य सनातन संत पुकारा, गरीब बाबा के शाप है।
तूं संग मैं ही परखाना।।
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