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Showing posts from September, 2024

**653 किन संग करूं मैं लड़ाई।।

किन संग करूं मैं लड़ाई।। जो मिले सब कायर मिले, नाम सुने भाग जाई।। भागते जीव को कभी ना पकड़ूं, देख दया मन आई। ठहर सके तो हाथ बटाऊं, मुझे मरन का डर नाहीं।। मरता ने मारू मजा नहीं आवे, वो तो खुद ही मर जाई। मुर्दा हो सो मुझको वो मारे, मैं तो जिंदा से मरता नाहीं।। आसन पदम लगा के बैठूं, मूल का बंधन लगाई। कह कबीर गोला गुरु गम का, शब्द की तोप चलाई।।

**1146। चादर हो गई बहुत पुरानी।।

चादर हो गई बहुत पुरानी, अब तो सोच समझअभिमानी।। अजब जुलाहा चादर बुनी, सूत कर्म की तानी। सूरत निरत के भरना दीन्हा, तब सब के मनमानी।। भई खराब आब गई सारी मोह लोभ में सानी। सारी उमर ओढ़ते बीती, भली बुरी नहीं जानी।। शंका मांनी जान जीव अपने है यह वस्तु बिरानी। कहे कबीर यह राख जतन से, फिर ये हाथ ना आनी।।

** 1305 बाबा कबीर गुरु पूरा है।।

बाबा कबीर गुरु पूरा है।। पूरे गुरु कीमैं जाऊं बलिहारी, जा का सकल जहूरा रहा है।। सब ही में व्यापक सबसेही न्यारा, हरदम रहत अधूरा है।। श्वेत ध्वजा फहराई गगन में, हो बाजे अनहद तुरा है।। नाम कबीर जपे वह नर सूरा, वो नानक चरण की धूरा है।।

**510। मेरी लागती ना गुरु बिन अखियां।।

मेरी लागती न गुरु बिन अंखियां आवे। मैं भी रंगीली मेरा पियाभी रंगीला।                 और रंगीली सारी सखियां।। मैं भी जगाई मेरा सैया भी जगाया।                और जगाई सारी सखियां।। प्रेम बाण सतगुरु हृदयमें लागे,                 जोत जागे सारी रतिया।। कहे कमांली कबीरा थारी बाली।               मेरी लख चौरासी सखियां।।

*983 लगन बिन जागे ना निर्मोही।।

लगन बिन जागे ना निर्मोही।।  बिना लगन की प्रीत बावरे  ओस नीर ज्यों धोई।। हम तो रमते राम भरोसे, रजा करे सो होई।। बिन कृपा सतगुरु नही पावे, लाख जतन कर कोई।। कह कबीर सुनो भई साधो, गुरु बिन मुक्ति ना होई।।

*1150 चुनर में दाग कहां से लागा।।

चुनर में दाग कहां से लागा।। पांच तत्वों की बनी चुनरिया तीन गुणों का धागा। नो दस मास बनन में लागे, तिन हु में टोटा लाग्या।। आठ कोठरी नो दरवाजे, दसवें में ताला लाग्या। ना जाने खिड़की खुली रही, कब चोर निकाल के भागा। ना कोई तेरे सास ननदिया न देवर संग लागा। ना  कोई तेरे गोदी बालकवा, कजरा कहां से लागा।। कहत कबीर सुनो भाई साधो, ये पद है निरवाना। जो इस पद का अर्थ लगावे, सोई संत अनुरागा।।

*1291। गगन पर है देश हमारा चलो साहब।।

गगन पर है देश हमारा चलो साहब मिल जाएंगे।। पढ़िया लिखीया सब ही थाका, बिन गुरु मर्म न पाए। स्वर्ग नरक के बीच में देखो फिर फिर भटका खाए।। पांच तत्व गुन तीन परे हैं, ता पर अलख लखाए। चोदह लोक अगम के ऊपर, जा को काल ना खाए।। अगम अनादि पुरुष है भाई, वाही रहे थीर थाए। निराकार साकार नहीं है निर्गुण सरगुन नाए।। दया परम गुरुदेव की रहिए चरण समांए। काहे कबीरा धर्मी दास ने, बहुरी न जग में आए।।

*1276 अवधू निरंजन जाल पसारा।।563।।

अवधू निरंजन जाल पसारा।। स्वर्ग पाताल जीव मृत मंडल, तीन लोक विस्तारा  ब्रह्मा विष्णु शिव प्रकट कियो है,यही दियो सिर भारा।। ठांव ठाव तीर्थ वर्त थाप्यो, ठगने को संसारा।। मायामोह कठिन विस्तारा, आप भयो करतारा।। सतगुरु शब्द को चिन्हित नाही, कैसे होय उबारा। जारी मूंज कोयला कर डारे, फिर फिर ले अवतारा।। अमर लोक जहां पुरुष विराजे, तिन का मूंदा द्वारा।। जिन साहब से भए निरंजन,  सो तो पुरुष है न्यारा।। काठी काल से बचना चाहो, गाहो शब्द टकसारा। कहे कबीर अमर कर रखो मानो वचन हमारा।।

*1321 करता करम रेख से न्यारा।।579

करता करम रेख से न्यारा।      ना वह आवे गर्भावास में ना वो धरे अवतारा।।      ब्रह्मा वेद भेद नहीं पावे पढ़ पढ़ मरे लबाडा     नहीं वह मरे नहीं वह मारे सब घट पालन हारा।।     घीसा संत सुनो भाई साधु, निर्गुण धनी हमारा।।

*1272 घररररर-घररर गगना गाजे,ओमकार का घर न्यारा।।561।।

घरर घरर गगना गाजे, सोहम सोहम झंकारा।। अकड़ बम बम बाजे नगाड़ा ओमकार का घर न्यारा।। रंग महल में देख ले अवधू ,निराकार एक निरधारा।। सोहमशिखर घर अटल ज्योत है,   पहुंचेगा हरि का प्यारा।। धन्य कारीगरी साहबी तेरी पॉर न पाया थारा। सकल तीत में ब्रह्मा थरपिया, चेतन कर दिया पोबारा। अटल तख्त पर औघड़ तापे, निराकार एक निर्धारा।। सूर्त न मूर्त रूप नही रेखा, एक रंगी सब से न्यारा।। ममता मार भरमगढ़ तोड़ा, जीत लिया जम का द्वारा।। जालम गिरी सतगुरु के शरणमें, मैं चेला तुम गुरु म्हारा

*986 उजियाला है उजियाला है ।।446।।

उजियाला है उजियाला है, घट भीतर पंथ निराला है।। त्रिकुटी महल में ठाकुरद्वारा दिन के अंदर चमके तारा।           चहुं दिश परम तेज विस्तारा सुंदर विशाला है।। सात खंड का बना मकाना, मार्ग दुष्कर जाना।       गुरु किरपा से सजे सुजाना पीवे अमृत प्याला है।। सूरत हंसनी उड़ी आकाशा, देख अचरज सकल तमाशा।      नो भुवन हुआ प्रकाशा खुल गया निर्गुण ताला है।। कर्मों का बंधन सब टूट गया मोह भरा घट टूट गया।        ब्रह्मानंद शक्ल में छूट गया, मिटा सब जंजाला है।।

*1347 आशिक मस्त फकीर हुआ तब क्या दिलगीरपणा मन में। 588।।

आशिक मस्त फकीर हुआ, तब क्या दिलगिर पना मन में।। कोई पूजा फूलन मालन से, सब अंग सुगंध लगावत है। कोई लोग निरादर कार करें, मग धूल उडावत है तन में।। कोई कान मनोहर आलन में, रसदायक मिष्ठ पदार्थ है। किस रोज जला सुखड़ा टुकड़ा, मिलजाए चबैना भोजन में।। कभी औढत सालदुशालन को, सुख सोवत महल अटारी में।। कभी चीर फटी तनकी गुदड़ी, नीत लेटत जंगल या बन में।। सब द्वैत भाव को दूर किया, पर ब्रह्म सभी घट पूर्ण है।। ब्रह्मानंद ना बैर ना प्रीत कहीं, जग में विचरे सम दर्शन में।।

*1276 क्या गम पूछे मेरी रे अबधू, सहज स्वरूपी रमता आया जी।।563।।

क्या गम पूछे मेरी रे अबधू, सहज स्वरूपी रमता आया जी।। अमरलोक से हंस बिछड़या, यहां आ नगर बसाया जी। यहां आ के घर भूल गया रे, माया से मोह लगाया जी।। छज्जा बंगला खूब बना है सोहंग दीप लगाया जी। चोदह लोक में काल की चौकी खबरदार हो रहनारे।  उससे आगे अगम भोम है, सत शब्द से रहना जी।। नो शब्द से चिन्हे दसवें में मती हमारी जी। कह कबीर सुनो जती गोरख, भंवरी ना ले जगत तेरा जी।।

*1559 तुम साहिब करतार हो हम बंदी तेरे।।684।।

तुम साहिब करतार हो हम बंदी तेरे। रोम रोम गुन्हेगार है बख्सो हरि मेरे।। दसों द्वारे मैल है सब गंदम गंदा। उत्तम थारो नाम है बिसरे सोई अंधा।। गुण तज के अवगुण किए तुम सब पहचानो। तुम से कहां छुपाईये तुम घट की जानो।। रहम करो रहमान तुम यह दास तुम्हारो। भक्ति पदार्थ दीजिए आवागमन निवारों।। गुरु सुखदेव उबार लो अब मेहर करीजे। चरण ही दास गरीब को, अपनों कर लीजे।।

लेटेस्ट कबीर भजन सूची।। sept 2024।।

1553 अखंड साहिब का नाम।। 682।। 228अखियां हरी दर्शन की प्यासी।। 691 अगत में मत ना बोले शूल 336।। 1485 अगम गवन कैसे करूं।। 651।। 1248 अगम घर चलना है  1221 अगम लोक से सतगुरु आकर।।  306 अगर है प्रेम दर्शन का।। 1005 अगर है प्रेम मिलने का।। 452।। 1039 अगर है मोक्ष की इच्छा।। 465।। 1448 अगर है ज्ञान को पाना।। 1019 अड़सठ तीर्थ नहा ले तू।। 458।। 1319 अचरज खेल अत्तंभा देखा।। 1329 अचरज देखा भारी रे साधु।। 374 अजब है यह दुनिया दस्तूर।। 1355 अजब फकीरी साहबी।। 1333 अटल फकीरी धुन लाइ।।   714 अति कभी ना करना बंदे।। 343।।     27 अन घड़ियां देवा।।     26 अनघड की रे साधु।।   333 अंदर अनमोल ना रे लाल।।   676 अनमोल तेरा जीवन यूं ही गवा रहा।।330।। 1303 अनहद की धुन नारी साधु।। आई   664 अपना मानुष जन्म सुधार।। 325।।   698 अपनी आत्मा पहचान।। 338।।           अपने कर्म की गति में क्या जानूं  अपने को आप भूल कर।।                               1 1000 अपने  प्यारे सतगुरु जी का।। 450।।   345 अपने हाथों फाँसी घाले।।   242 अब कैसे छूटे राम धुन।। अब कैसे प्रेम निभाऊ मैं।।    19 अब कोई गुरुचरण चित लावे।।    73अब जाना है