*1347 आशिक मस्त फकीर हुआ तब क्या दिलगीरपणा मन में। 588।।
आशिक मस्त फकीर हुआ, तब क्या दिलगिर पना मन में।।
कोई लोग निरादर कार करें, मग धूल उडावत है तन में।।
कोई कान मनोहर आलन में, रसदायक मिष्ठ पदार्थ है।
किस रोज जला सुखड़ा टुकड़ा, मिलजाए चबैना भोजन में।।
कभी औढत सालदुशालन को, सुख सोवत महल अटारी में।।
कभी चीर फटी तनकी गुदड़ी, नीत लेटत जंगल या बन में।।
सब द्वैत भाव को दूर किया, पर ब्रह्म सभी घट पूर्ण है।।
ब्रह्मानंद ना बैर ना प्रीत कहीं, जग में विचरे सम दर्शन में।।
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