*986 उजियाला है उजियाला है ।।446।।

उजियाला है उजियाला है, घट भीतर पंथ निराला है।।

त्रिकुटी महल में ठाकुरद्वारा दिन के अंदर चमके तारा।
          चहुं दिश परम तेज विस्तारा सुंदर विशाला है।।

सात खंड का बना मकाना, मार्ग दुष्कर जाना।
      गुरु किरपा से सजे सुजाना पीवे अमृत प्याला है।।

सूरत हंसनी उड़ी आकाशा, देख अचरज सकल तमाशा।
     नो भुवन हुआ प्रकाशा खुल गया निर्गुण ताला है।।

कर्मों का बंधन सब टूट गया मोह भरा घट टूट गया।
       ब्रह्मानंद शक्ल में छूट गया, मिटा सब जंजाला है।।

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