*1276 क्या गम पूछे मेरी रे अबधू, सहज स्वरूपी रमता आया जी।।563।।

क्या गम पूछे मेरी रे अबधू, सहज स्वरूपी रमता आया जी।।
अमरलोक से हंस बिछड़या, यहां आ नगर बसाया जी।

यहां आ के घर भूल गया रे, माया से मोह लगाया जी।।
छज्जा बंगला खूब बना है सोहंग दीप लगाया जी।

चोदह लोक में काल की चौकी खबरदार हो रहनारे। 
उससे आगे अगम भोम है, सत शब्द से रहना जी।।

नो शब्द से चिन्हे दसवें में मती हमारी जी।
कह कबीर सुनो जती गोरख, भंवरी ना ले जगत तेरा जी।।

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