*1153। चादर हो गई बहुत पुरानी।।
चादर हो गई बहुत पुरानी, अब तो सोच समझअभिमानी।।
अजब जुलाहा चादर बुनी, सूत कर्म की तानी।
सूरत निरत के भरना दीन्हा, तब सब के मनमानी।।
भई खराब आब गई सारी मोह लोभ में सानी।
सारी उमर ओढ़ते बीती, भली बुरी नहीं जानी।।
शंका मांनी जान जीव अपने है यह वस्तु बिरानी।
कहे कबीर यह राख जतन से, फिर ये हाथ ना आनी।।
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