*653 किन संग करूं मैं लड़ाई।।320।।

किन संग करूं मैं लड़ाई।।
जो मिले सब कायर मिले, नाम सुने भाग जाई।।

भागते जीव को कभी ना पकड़ूं, देख दया मन आई।
ठहर सके तो हाथ बटाऊं, मुझे मरन का डर नाहीं।।

मरता ने मारू मजा नहीं आवे, वो तो खुद ही मर जाई।
मुर्दा हो सो मुझको वो मारे, मैं तो जिंदा से मरता नाहीं।।

आसन पदम लगा के बैठूं, मूल का बंधन लगाई।
कह कबीर गोला गुरु गम का, शब्द की तोप चलाई।।


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