*1040 तू पकड़ शब्द की डोर है सखी।।467।।

तू पकड़ शब्द की डोर हे सखी क्यों व्यरथा जन्म गवावै से।।
तेरे अंदर माल खजाना, क्यों चोरों पर लुटवावे से।।
तेरे अंदर जोत निराली, तू बाहर ज्योत क्यों लावै से।।
तेरे अंदर सात समुंदर बाहर नहान क्योंजावे से।।
तेरे अंदर अनहद बजा तू बाहर कान क्यों लावे से।।
हे ब्यास वाला गुरु हमारा वह नैया पार लगावेसे।।

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