*995. कीत जाऊं मैं कित जाऊं मैं।।448

कित जाऊं मैं कित जाऊं मैं अब कैसे प्रेम निभाऊं मैं।।
मैं जाना था प्रेम प्यारा यह तो निकला दुश्मन भारा।
घायल करके मुझको डारा, किसको हाल सुनाऊं मैं।।
    जिसने प्रेम प्याला पिया सो मर मर के फिर जिया।।
   निशदिन कांपे मेरा हिया कैसे कर समझाऊं मैं।।
मजनू को लैला ने भटकाया रांझा हीर फकीर बनाया।
सूली पर मंसूर चढ़ाया किस किसको बतलाऊं मैं।।
    मारग कठिन प्रेम का भारी बिरला पहुंची हिम्मतवारी।          ब्रह्मानंद परम सुख कारी कैसे दर्शन पाऊ मैं।।

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