*877. छोड़ मन मेंरा रे।। 412
छोड़ मन मेरा रे बे मुखिया रो संग।।
पहली संगति में कुब्ध उपजे पड़े भजन में भंग।।
जितनी मूंज भेवो गंगाजल उतनी होगी तंग।।
अरंड कहे मेरे परमल आयो चंदन तजे ना सुगंध।।
कितना ही दूध पिला लो सर्प को आखिर मारे डंक।।
गरीबदास की काली कमरिया चले ना कि जो रंग।।
Comments
Post a Comment