*868. हुआ मन गुरु भक्ति में लीन।।
हुआ मन गुरु भक्ति में लीन।।
ज्यों रैना के साथ चंद्रमा ज्यों सागर में मीन।
जैसे सावन संग घटाएं जैसे धरती संग दिशाएं।
जैसे गीत के बोल हुए हैं स्वरों में आसीन।।
क्यों बादल में चमके बिजली ज्यों सीप में मोती।
ज्यों सूरज की किरने करती सुबह को रंगीन।।
हर पल गुरुवर के गुण गाओ चरणों की रज माथे लगाओ।
स्वामी गीतानंद गुरुजी का स्मरण करूं निश दिन।।
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