*863 मेरे पूरे गुरु ने पकड़ लिया मन मेरा।। 406

            मेरे पूरे गुरु ने पकड़ लिया मन मेरा।।
यह मन है माया का लोभी धन का खूब लुटेरा।
ऐसा बाण मारा सतगुरु ने गुप्त कोठरी में गेरा।।
      यह मलवा तो शरी सर्प है मारे डंक भलेरा।
      ऐसी बीन ज्ञान की बजाई बन गया आप सपेरा।।
यह मृग की आदत, सूंघा घास घनेरा।
ऐसा बाण ज्ञान का मारा घायल करके गेरा।।
     सूरत निरत बीच देख तमाशा होजा दूर अंधेरा।
     भानी नाथ शरण सतगुरु की अमरापुर में डेरा।।

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