900. मन की जो फेरे माला योगी जन वही।।417

       मनकी जो फेरे माला जोगी जन वोही।।
हाथ ना हाले जीभ ना चाले, तन को न होय कसाला।।
नाभि नासिका एक मिलावे गुप्त चाल से खोले ताला।।
जाकर बैठे भंवर गुफा में हटे भरम का जाला।।
दसवें दवारे बाजे बाजे कह कबीर होई निहाला।।

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