*898 भाई में नित कहूं समझाए।।416।।
भाई मैं नित कहूं समझाए, छोड़ दे मेरी मेरा रे।।
जिनको तू कहता है अपना यह तो है सब रेन का सपना।
लगा जग जोगी वाला फेरा रे।।
कुलकुटूमब नाती परिवारा एक दिन सबको देय किनारा।
अंत श्मशानो में डेरा रे।।
राचा मांचा अब फिरता है मौत का खौफ ना सिर धरता है।
फिर रहे तेरे यमदूत चोफेरा रे।।
काल-जाल से जो बचना चाहो सतगुरु की टहल बजाओ।
करे दिल का दूर अंधेरा रे।।
सतगुरु ताराचंदजी दे रहे हेला कंवर समझ यह जगत झमेला
कोई करो निज धाम बसेरा रे।।
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