*883. क्या पानी में मलमल नहाए।। 412।

क्या पानी में मल मल नहाए,मन की मैल उतार प्यारे।

हाड़ मांस की देह बनी है, झरे सदा नव द्वार प्यारे।
पाप कर्म तन के नहीं छोड़े, कैसे होए सुधार प्यारे।।
संवत तीरथ जल निर्मल, नित उठ गोता मार प्यारे।
ब्रह्मानंद भजन कर हरी का, जो चाहे निस्तार प्यारे।।

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