*870 कोई बदलेंगे हरीजन सूर ।।408

    कोई बदलेंगे हरिजन सूर मनवा तेरी आदत ने।।
चोर जवारी क्या बदलेंगे माया के मजदूर।
भांग तमाकू अमल धतूरा रहे नशे में चूर।।
     पांच विषयों में लटपट हो रहे सदा मती के क्रूर।
    उनको तो सुख सपने ना ही रहे साहिब से दूर।।
पाचों ठगनी मिलकर लूटें, माहे तृष्णा हूर।
बे अक्ली में हम लूटेंगे, मचा रही हस्तूर।।
      उत्तम कर्म हरी की भक्ति सत्संग करो जरूर।
       जन्म-जन्म के पाप कटेंगे हो जाएंगे माफ कसूर।।
सुरती समृति वेद की नीति गुरु मिले भरपूर।
संत जोतराम समाज का मेला सच्चिदानंद नूर।।

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