1005। अगर है प्रेम मिलने का तो दुनिया से क्यों शर्मावे।।
अगर है प्रेम मिलने का तो दुनिया से क्यों शर्मावे।।
पिता पहलाद को मारा नाम हरि का ना छोड़ा है।
प्रभु रक्षा करें जिनकी तो मन में कौन डरपावे।।
चला वन में तपस्या को मना किया राजा लगन जिसको। लगी पूर्ण उसे फिर कौन अटकावे।।
सभा के बीच द्रौपदी ने पुकारा नाम माधव का।
भरोसा है जिसे हरि का क्यों दूजे की शरण जावे।।
सदा सत्संग में जाकर करो हरी का भजन प्यारे वह ब्रह्मानंद जाता है, बता फिर हाथ ना आवे।।
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