*861 रे मनवा राजा जाएगा कौन सी घाटी।।
रे मनवा राजा जाएगा कौन सी घाटी।।
कौन दिशा ने आई मन पवना कौन दिशा को जासी।
कौन दिशा न भजन उभरिया, कौन दिशा रम जासी।।
आगम दिशा से आई पवना पश्चिम दिशा को जासी।
बंक नाल से भजन उभरिया, ररंकार में रम जासी।।
ऊंची नीची सूरत करे ना चंदा ज्योति रवासी।
तत्व नाम का खेत पूर ले, जगा करें दिन राती।।
बारह अंगुल सेवता सोलह अंगुल फांसी।
सवा हाथ रो भगवा चोलो, त्रिवेणी री घाटी।।
दीपक में एक दीपक दर से दीपक में एक झाई।
झाईं में परछाई दर से, वहां बसे मेरा साइ।।
कहे मछंदर सुन जती गोरख, जाति हमारी तेली
तेल तेल सो काट लिया, खल पशुओं ने मेली।।
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