*954 रे मनवा अब तो संभल मेरे भाई 41।।

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रे मनवा अब तो समझ मेरे भाई तेरा अवसर बीता जाई।।

लाख करोड़ी माया जोड़ी कर कर कपट कमाई।
ऊंचे ऊंचे महल बनाए सोया सेज सजाई।।

सुंदर सुंदर वस्त्र पहने भूषण देह सजाई।
नए-नए नित भोजन खाएं, सडरस स्वाद बनाई।।

जोबन भरिया सुंदर नारी भोगी कंठ लगाइ।
गज रथ बाजी करी सवारी सैल किए मन भाई।।

बालपणा जोबन पुनः बीता वृद्धावस्था आई।
ब्रह्मानंद छोड़ कर तृष्णा शांति पकड़ मन माही।।

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