*969. मन भाती है मन भाती है 439।।
मन भाती है मन भाती है, अनहद की टेर सुहाती है।।
गगन महल में नौबत बाजे ऊपर शिखर घंटा घन गाजे।
चंचल बिजली चमक विराजे, बूंद सुधा बरसाती है।।
बिना दीपक जहां जीव उजाला कोटिभानु शशिचमके तारा।
खेल करे नित प्रीतम प्यारा, सखियां मिलकर गाती है।।
उल्टा मार्ग कठिन दोहेला को एक पहुंचे गुरु का चेला।
सूरत शब्द का होवे मेला, प्याला प्रेम पिलाती है।।
भंवर गुफा मै सेज बिछाई योग नींद तन शुद्ध विसराई।
ब्रह्मानंद परम सुखदाई पूर्ण रूप समाती है।।
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