*985. घटका करो विचार साधु ।।446।।
घट का करो विचार साधु, घट का करो विचार रे।।
घट में गंगा घट में जमुना, त्रिवेणी की धार रे।
घट में नदियां पर्वत, सागर बाग बहार रे।।
घट में सूरज घट में तारे, घट में चंद्र उजार रे।
घट में बिजली चमक बहावे, गर्जे मेघ अपार रे।।
घट में तीनों देव विराजे, ब्रह्मा शंभू मुरार रे।
घट में पूर्ण ब्रह्म निरंजन, सब जग सर्जन हार रे।।
जो बरहमंडे सोई पिंडे, मन में निश्चय धार रे।
ब्रह्मानंद उलट सुरती को, देखा सकल निहार रे।।
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